October 6, 2024

मृत्‍यु से पहले दिए गए बयान हमेशा दोष सिद्ध करने का आधार नहीं हो सकते : सुप्रीम कोर्ट

दिल्‍ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले में कहा है कि डाइंग डिक्लरेशन यानी मरने से पहले दिए गए बयानों पर भरोसा करते समय अदालतों को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. भले ही कानून ये अनुमान लगाता है कि ये सच होते हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युपूर्व दिए गए बयानों पर भरोसा करने के लिए कारक भी बताए हैं. निचली अदालतों के समवर्ती निष्कर्षों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट इस बात से सहमत नहीं था कि केवल मृत्युपूर्व दिए गए बयानों के आधार पर दोषसिद्धि को बरकरार रखा जा सकता है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता-दोषी के खिलाफ अपना मामला उचित संदेह से परे साबित कर दिया है. इसलिए, हम इन अपील को स्वीकार करते हैं और अपीलकर्ता-दोषी को उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी करते हैं. 

1. क्या बयान देने वाला व्यक्ति मृत्यु की आशा में था?

2. क्या मृत्यु पूर्व घोषणा यथाशीघ्र की गई थी? 

3. क्या इस बात पर विश्वास करने का कोई उचित संदेह है कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान मरने वाले व्यक्ति को सिखाया गया था?

4. क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान पुलिस या किसी इच्छुक पक्ष के कहने पर प्रेरित करने, सिखाने या नेतृत्व करने का परिणाम था?

5. क्या बयान ठीक से दर्ज नहीं किया गया?

6. क्या मृत्यु पूर्व घोषणाकर्ता को घटना को स्पष्ट रूप से देखने का अवसर मिला था?

7. क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान पूरे समय एक जैसा रहा है?

8. क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान अपने आप में मरने वाले व्यक्ति की उस कल्पना की अभिव्यक्ति है?

9. क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान स्वयं स्वैच्छिक था?

10. एकाधिक मृत्युपूर्व बयानों के मामले में, क्या पहला सत्य को प्रेरित करता है और दूसरे मृत्युपूर्व  बयानों के अनुरूप है?

11. क्या चोटों के अनुसार मृतक के लिए मृत्यु पूर्व बयान देना असंभव था?

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